पत्नी की आत्महत्या के लिए पति को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली –
सुप्रीम कोर्ट ने एक केस पर अपने फैसले के दौरान बड़ी बात कही है। कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि पत्नी के आत्महत्या करने पर यह मानकर नहीं चला जा सकता कि उसने खुदकुशी पति के उकसाने पर ही की है। इसके लिए स्पष्ट सबूत होने चाहिए जो दिखने वाले हों। इस मामले में यूं ही आत्महत्या के लिए उकसाने पर पति को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। यह कहते हुए जस्टिस एनवी रमन की पीठ ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी पति को बरी कर दिया।
क्या था केस –
दरअसल गुरचरण और उसके माता पिता को अपनी पत्नी की आत्महत्या के आरोप में आईपीसी की धारा 304बी, 498 और 34 के तहत आरोपित किया गया था। हालांकि ट्रायल कोर्ट ने कहा कि आरोपियों को धारा 304बी और 498 के तहत दंडित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। लेकिन, उन पर धारा 306 के तहत पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा चल सकता है।
ट्रायल कोर्ट ने कहा कि विवाहित स्त्री की अपेक्षा होती है कि पति उसे प्यार और वित्तीय सुरक्षा देगा। यदि उसकी ये अपेक्षाएं जानबूझकर लापरवाही करके पति द्वारा तोड़ी जाती हैं, तो ये धारा 307 के तहत अपराध बनेगा और उसे धारा 306 के तहत दंड मिलेगा। पंजाब हाई कोर्ट ने पति की अपील खारिज कर दी और ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया था। पंजाब कोर्ट ने कहा था कि वैवाहिक घर में जो परिस्थितियां और माहौल बना था उनके कारण वह आत्महत्या के लिए मजबुर हुई।
सुप्रीम कोर्ट में की अपील –
इस फैसले को गुरचरण ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई सीधा सबूत नहीं है। न ही ऐसा कोई सबूत है जिससे यह पता चलता हो कि पति और ससुराल पक्ष ने कोई प्रताड़ना की है। यह भी नहीं पता चल रहा है कि उन्होंने उसकी कौन सी विशेष अपेक्षा को तोड़ा जिससे वह अपने पति से इतना निराश हो गई थी। साथ ही यह भी नहीं सामने आया है कि पति ने उसकी जानबूझकर उपेक्षा की।
कोर्ट ने कहा कि पेश सबूतों से यह कहीं भी नहीं लगता कि पत्नी की देखभाल करने में पति ने कोई कसर बाकी रखी थी। या उसने ऐसा कोई काम किया जिससे पत्नी निराश हो गई हो। बिना ठोस सबूतों के ऐसा निष्कर्ष निकालना गलत है। जिसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया।