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देश के कई हिस्सों में कड़ाके की ठंड, यहां जम गयी नदी

नई दिल्ली – देश के कई हिस्‍सों में पारा शून्‍य से नीचे जा चुका है। ऐसे में इन क्षेत्रों में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। कुछ इलाकों में तो शीतलहर का प्रकोप भी जारी है। इस बीच मौसम विज्ञान विभाग ने उत्‍तर प्रदेश और बिहार के कई जिलों में कड़ाके की ठंड पड़ने का अनुमान जताया है। दरअसल पहाड़ों पर हुई बर्फबारी के कारण मैदानी इलाकों में ठंड बढ़ गई है।

जम्मू्-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में अधिकतर स्थानों पर तापमान शून्य से नीचे चला गया है। कश्मीर में 40 दिन तक पड़ने वाली कड़ाके की ठंड यानी ‘चिल्लई कलां’ की सोमवार से शुरुआत हो गई। जानकारी के मुताबिक, 21 दिसंबर से 31 जनवरी तक शीतलहर कश्मीर को अपने आगोश में ले लेती है, जिससे इलाके में कड़ाके की ठंड पड़ती है। श्रीनगर में न्यूनतम तापमान शून्य से नीचे चार डिग्री सेल्सियस रहा।

मौसम विभाग के अनुसार, माउंट आबू में रविवार रात न्यूनतम तापमान शून्य से दो डिग्री सेल्सियस नीचे दर्ज किया गया। पंजाब और हरियाणा में पिछले कुछ दिनों से चल रही शीत लहर की स्थिति सोमवार को भी जारी रही। पटना के मौसम विज्ञान केंद्र ने अगले 24 घंटे तक राज्य के सभी शहरों में कोल्ड डे या कोल्ड वेब का अलर्ट जारी किया है। पटना का अधिकतम तापमान 17.8 डिग्री दर्ज किया गया। गया का अधिकतम 20.6, भागलपुर का 21.2 जबकि पूर्णिया का 22.1 डिग्री सेल्सियस रहा।

मौसम विभाग ने अगले 24 घंटों के दौरान उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में प्रचंड शीतलहर चलने की चेतावनी जारी की है। इस दौरान कोल्ड डे के हालात रहेंगे यानी दिन में धूप नहीं निकलेगी। सुबह व रात में घना कोहरा छाया रह सकता है।

यहां जम गयी नदी –
इधर भारत-चीन सीमा से सटे लिपूलेख क्षेत्र में माइनस 20 डिग्री से नीचे पारा पहुंच गया है। लगातार पारा गिरने के बाद अब कुटी यंगती नदी पूरी तरह से जम गई है। क्षेत्र के 18 प्रमुख जल स्रोतों का पानी भी जम गया है। जिससे उच्च हिमालयी गांवों में इस समय रह रहे कई लोगों के साथ चीन सीमा में तैनात सैनिकों को पीने पानी के लिए तक मुसीबत झेलनी पड़ रही है।

16 हजार 640 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित लिपूलेख दर्रा भारत व चीन के बीच सीमा विभाजन करता है। वहां इस समय तापमान रात के समय माइनस 20 से नीचे पहुंच रहा है। नप्लचु, नाभी, रोंककोंग, गुंजी, कुटी में इस समय रात को तापमान माइनस 8 से नीचे जा रहा है। जिससे इन गांवों के सभी जल स्रोत जम गए हैं।

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