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जल्द भारत आ रहा अमेरिकी B-1B विमान, एक बार में बरसा सकता है 46 हजार किलो बम-मिसाइलें, जाने बाकि की खासियतें

नई दिल्ली – अमेरिकी B-1B विमान तबाही का दूसरा नाम है। यह भारी मात्रा में विस्फोटक लेकर उड़ने वाले ऐसे बमवर्षक विमान है जो दुश्मन देशों के अंदर घुसकर तबाही मचाए साथ ही तेज रफ्तार से विरोधी लड़ाकू विमानों और मिसाइलों से बचकर निकल भी सके। पहले यह बी-1 बमवर्षक विमान के नाम से जाना जाता था। बाद में इसका अपग्रेड वर्जन को आज ‘B-1B लैंसर लॉन्ग रेंज स्ट्रैटिजिक बॉम्बर’ के नाम से जाना जाता है।

हाल के दिनों में यह तब चर्चा में आ गया जब इसके एयरो इंडिया 2021 में उड़ान भरने की खबरें सामने आईं। B-1B लैंसर व्यापक रूप से अमेरिका की लंबी दूरी की बमवर्षक सेना की रीढ़ माना जाता है। मूल रूप से बी -52 बॉम्बर की जगह लेने के लिए विकसित किया गया यह विमान अपने तेज रफ्तार, ऊंचाई पर उड़ने की क्षमता और भारी संख्या में बम और मिसाइल ले जाने की क्षमता के लिए जाना जाता है।

बी-1बी विमान की खासियतें –
– इस विमान की कुल वजन लेकर उड़ने की क्षमता 2 लाख 16 हजार किलो से भी ज्यादा है। इसमें से 46 हजार किलो से ज्यादा का वजन का बम और मिसाइलें होते हैं।

– यह विमान 34 हजार किलो विमान के अंदर और 22 हजार किलो से ज्यादा वजन का विस्फोटक पंखों पर लगाकर उड़ सकता है। साथ ही 1 लाख 20 हजार किलो वजन का तेल भी साथ लेकर उड़ान भरता है।

– इतना भारी भरकम होने के बावजूद यह विमान सुपरसोनिक रफ्तार से उड़ता है। चार शक्तिशाली टर्बो फैन इंजनों की मदद से 30 हजार पाउंड से ज्यादा के

– थ्रस्ट के साथ 1.6 मैक तक की रफ्तार से उड़ सकता है।

– यह अमेरिकी विमान अब तक 12 हजार से भी ज्यादा उड़ानें भरकर सीरिया, लीबिया, अफगानिस्तान और इराक में अपने मिशन को अंजाम देते हुए तबाही मचा चुका है।

– यह विमान 30 हजार फीट यानी 9 हजार मीटर की ऊंचाई तक उड़ान भरता है और 4 लोगों का क्रू इसको ऑपरेट करता है।

– अमेरिका के पास इस तरह के 66 विमान मौजूद हैं और उन कुछ वजहों में से एक हैं जो यूएस को सुपरपावर बनाते हैं। फिलहाल भारतीय वायुसेना के पास इस तरह का कोई विमान मौजूद नहीं है और समय समय पर रूस और अमेरिका से भारत के बॉम्बर खरीदने को लेकर विश्लेषण और अटकलें सामने आती रही हैं।

बमवर्षक यानी बॉम्बर हमलावर लड़ाकू विमान ऐसे लड़ाकू विमान होते हैं जो खरीदने के लिए कीमत में बहुत महंगे होते हैं और इन्हें ऑपरेट करना भी काफी महंगा पड़ता है। दुनिया में फिलहाल अमेरिका, रूस और चीन ही इनका इस्तेमाल करते हैं।

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